मेरी यादें, मेरा चेहरा, मेरी बातें रुलायेंगी,
हिज़्र के दौर में, गुज़री मुलाकातें रुलायेंगी,
दिन तो चलो तुम काट भी लोगे फसानों में,
जहाँ तन्हा रहोगे तुम, तुम्हें रातें रुलायेंगी।
सजा कैसी मिली मुझको तुमसे दिल लगाने की,
रोना ही पड़ा है जब कोशिश की मुस्कुराने की,
कौन बनेगा यहाँ मेरी दर्द-भरी रातों का हमराज,
दर्द ही मिला जो तुमने कोशिश की आजमाने की।
मैंने कुछ इस तरह से खुद को संभाला है,
तुझे भुलाने को दुनिया का भरम पाला है,
अब किसी से मुहब्बत मैं नहीं कर पाता,
इसी सांचे में एक बेवफा ने मुझे ढाला है ।