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देखें कि जमाने में क्या गुल खिलाते हैं हम
अब तक तो दर्द को ही उगाते रहे हैं हम

कश्ती के मरासिम से दरिया में आ गए
वरना किनारों से ही दिल लगाते रहे हैं हम 

मुहब्बत की आग में जो जलके खाक हो चुके
उनमें भी कुछ धुएं को जगाते रहे हैं हम 

नहीं जानता बेवफाओं से क्या रिश्ता हमारा
अब तक तो उनसे फासले बनाते रहे हैं हम 

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