शायरी : मैं ऐसे मोहब्बत करता हूं, तूम कैसी... - Paagalwords.blogspot.com
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शायरी : मैं ऐसे मोहब्बत करता हूं, तूम कैसी...

मैं ऐसे मोहब्बत करता हूं,
तूम कैसी मोहब्बत करती हो।

तूम जहां पे बैठ के जाती हो
मै वहां पे बैठा रहता हूं,
उस चीज को छूता रहता हूं
मैं ऐसे मोहब्बत करता हूं।

तूम जिस से हंस के मिलती हो
मैं उस को दोस्त बनाता हूं,

तूम जिस रस्ते पर चलती हो
मैं उस से आता-जाता हूं।

मैं ऐसे मोहब्बत करता हूं,
तूम कैसे मोब्बत करती हो।

तूम जिन को देखती रहती हो
वह ख्वाब सिरहाने रखता हूं,
तूम से मिलने जुलने के
कितने ही बहाने रखता हूं।।

मैं ऐसे मोहब्बत करता हूं,
तूम कैसे मोहब्बत करती हो।

तूम जहां भी बैठ के जाती हो
जिस चीज को हाथ लगाती हो,
मैं वहीं पे बैठा रहता हूं
उस जगह को छूता रहता हूं।

मैं ऐसे मोहब्बत करता हूं,
तूम कैसी मोहब्बत करती हो।

कुछ ख्वाब सजा कर अंखियों में
पलक से मोती चुनता हूं।
कोई लूम्स अगर चू जाये तो
मैं पेहरून उस को सोचता हूं।।

सवाल-ए-मोहब्बत

तूम जहां भी बैठ कर जाती हो
जिस चीज को हाथ लगाता हो।
मैं वहीं पर बैठा रहता हूं
उस चीज को छूता रहता हूं।।

मैं ऐसे मोहब्बत करता हूं
तूम कैसी मोहब्बत करती हो।

जिस बाग में सूबह तूम जाती हो
जिस सब्जे पर तूम चलती हो,
जो शेख तूम्हे छू जाती है
जो खुशबू तूम को भाती है।
वो ओस तुम्हारे चेहरे पर
जो कतरा-कतरा गिरता है,
वो तितली चूम के फूलों को
जो तूम से मिलने आती है
वो तूम को चूमने आती है।।

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