ज़िन्दगी इक खुली किताब की तरह थी। ...
हर इक शख्श बारी बारी पढ़कर चला गया। ..
किसी ने कुछ हसीन किस्से लिखे। ......
और किसी ने लिखा हुआ भी मिटा दिया। .......
अब कलम रोज़ पूछती है मुझसे। .......
तू दर्द में मुझे क्यों हमदर्द बनाता है। ....
मैंने भी मुस्कुराकर कह दिया। .....
जो हमदर्द दर्द न समझे। .......
तेरे सहारे कुछ दर्द उनके नाम लिख दिया !!!!!!
हर इक शख्श बारी बारी पढ़कर चला गया। ..
किसी ने कुछ हसीन किस्से लिखे। ......
और किसी ने लिखा हुआ भी मिटा दिया। .......
अब कलम रोज़ पूछती है मुझसे। .......
तू दर्द में मुझे क्यों हमदर्द बनाता है। ....
मैंने भी मुस्कुराकर कह दिया। .....
जो हमदर्द दर्द न समझे। .......
तेरे सहारे कुछ दर्द उनके नाम लिख दिया !!!!!!